रविवार, 29 जनवरी 2023

गन्ने की खेती कैसे करे पूरी जानकारी जाने। Ganne Ki Kheti Kaise Kare In Hindi

             गन्ने की खेती कैसे करे पूरी जानकारी जाने। Ganne Ki Kheti Kaise Kare In Hindi

Ganne Ki Kheti Kaise Kare In Hindi - नमस्कार प्यारे किसान भाई आज की पोस्ट में हम बात करेंगे Ganne Ki Kheti के बारे इसके साथ ही आप को Ganne Ki Kheti Jankari मिलने वाली है। कई किसान को पता नहीं होता है की Ganne Ki Kheti Kab Hoti Hai और गन्ने की खेती करने की विधि की जानकारी शेयर करेंगे तो बने रहे हमारे साथ Kheti Business पर तो चलिए आज कुछ नया सिख लेते है।




हमारे देश में गन्ना प्रमुख रूप से नकदी फसल के रूप में उगाया जाता है, जिसकी खेती प्रति वर्ष लगभग 30 लाख हेक्टर भूमि में की जाती है, इस देश में औसत उपज 65.4 टन प्रति हेक्टर है, जो की काफी कम है, यहाँ पर मुख्य रूप से गन्ना द्वारा ही चीनी व गुड बनाया जाता है।

Ganne Ki प्रमुख प्रजातियाँ

गन्ने की उन्नतशील प्रजातियाँ कौन-कौन सी उगाई जाती हैं ?

उत्तर प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रो के लिए गन्ने की विभिन्न प्रजातियाँ स्वीकृत हैं,शीघ्र पकने वाली कोयम्बटूर, शाहजहांपुर 8436, 88230,95255, 96268, 98231, 95436 एवं कोयम्बटूर सेलेक्शन-00235 तथा 01235 आदि हैं इसी तरह से मध्य एवं देर से पकने वाली प्रजातियाँ कोयम्बटूर शाहजहांपुर 8432, 94257, 84212, 97264, 95422, 96275, 97261, 96269, 99259
एवं यू. पी. 97 जिसे ह्रदय भी कहते हैं, यू. पी.-22 कोयम्बटूर पन्त 84212 तथा कोयम्बटूर सेलेक्शन 95422, व 96436 आदि हैं, इसी तरह से देर से बोई जाने वाली प्रजातियाँ कोयम्बटूर शाहजहांपुर 88230, 95255, यू पी-39 तथा कोयम्बटूर सेलेक्शन 92423 आदि हैंI
सीमित सिंचाई क्षेत्र हेतु कोयम्बटूर शाहजहांपुर 28216, 96275, कोयम्बटूर सेलेक्शन 92423,एवं यू. पी.-39 आदि हैं क्षारीय भूमि में पैदा करने हेतु कोयम्बटूर सेलेक्शन 92263 है जल प्लावन क्षेत्र के लिए यू. पी. 9530 एवं कोयम्बटूर सेलेक्शन 96236 आदि हैं,
इसी प्रकार से सीमित कृषि साधन क्षेत्र हेतु कोयम्बटूर सेलेक्शन 88216, 94275, 95255 आदि है,लेकिन एक बहुत ही ध्यान देने योग्य बात है, कोयम्बटूर सेलेक्शन-767 एक ऐसी प्रजाति है,जो की लगभग सभी परिस्थितियों में उगाई जा सकती है।

Ganne Ki Kheti के लिए उपयुक्त जलवायु

गन्ने की खेती के लिए अनुकूल जलवायु और भूमि किस प्रकार की होनी चाहिए ?

गन्ने की बुवाई के समय 30-35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान होना चाहिए, साथ ही वातावरण शुष्क होने पर बुवाई करनी चाहिए, गन्ना की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन दोमट भूमि सर्वोतम मानी जाती है, गन्ने के खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए, यहाँ तक की गन्ने की खेती अच्छे जल निकास वाली चिकनी भूमि में भी की जा सकती है।

Ganne के खेत की तैयारी
फसल के लिए खेत की तैयारी किस प्रकार करें ? खेत को 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करके भुरभुरा बना लेना चाहिए आखिरी जुताई में 200-250 कुंतल सड़ी गोबर की खाद खेत में मिलकर तैयार करना चाहिए।

Ganne की बीज बुवाई






गन्ने की खेती के लिए गन्ने के बीज का चुनाव और मात्रा तथा गन्ने का शोधन हमे कैसे करना चाहिए ?
शुद्ध रोग रहित व कीट मुक्त गन्ना अच्छे खेत से स्वस्थ बीज का चुनाव करें, गन्ने के 1/3 उपरी भाग का जमाव अच्छा होता है, गन्ने की मोटाई के अनुसार बीज की मात्रा कम ज्यादा होती है, 50-60 कुंतल लगभग 37500, तीन आंख वाले टुकड़े पैंडे, जिसे कहते हैं प्रति हेक्टर लगते हैं, अधिक देर से बुवाई करने पर डेढ़ गुना बीज की आवश्यकता पड़ती है, दो आँख वाले पैंडे 56000 प्रति हेक्टर लगते हैं, पारायुक्त रसायन जैसे ऐरीटान 6% या ऐगलाल 3% कॉपर सल्फेट कहतें हैं, कि क्रमशः 250 ग्राम या 560 ग्राम अथवा बाविस्टीन कि 112 ग्राम मात्र प्रति हैक्टर कि दर से 112 लीटर पानी में घोल बनाकर गन्ने के टुकड़ों या पैंडे को उपचारित करना चाहिए।

गन्ने की बुवाई के लिए कौन सी विधि का प्रयोग करें

गन्ने की बुवाई हल के पीछे लाइनों में करनी चाहिए, लाइन से लाइन की दूरी बुवाई में मौसम एवं समय के आधार पर अलग-अलग रखी जाती है, शरद एवं बसंत की बुवाई में ninety सेंटीमीटर तथा देर से बुवाई करने पर 60 सेंटीमीटर लाइन से लाइन की दूरी रखी जाती है, तथा पैंडे से पैंडे की दूरी 20 सेंटीमीटर दो आंख वाले गन्ने की रखी जाती है।

Ganne Ki Kheti का जल प्रबंधन

गन्ने की फसल की सिंचाई कब और किस समय करनी चाहिए, और कितनी मात्रा में करनी चाहिए सिंचाई, बुवाई एवं क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग समय एवं तरीके से की जाती है, प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में 4-5, मध्य क्षेत्र में 5-6, तथा पश्चिमी क्षेत्र में 7-8, सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है, इसके साथ ही दो सिंचाई वर्षा के बाद करना लाभप्रद पाया गया है।

Ganne Ki Kheti का पोषण प्रबंधन

गन्ने की फसल में खाद एवं उर्वरक कितनी,कब, और कैसे प्रयोग में लायी जा सकती है गन्ने की अच्छी उपज पाने हेतु गोबर की खाद का प्रयोग खेत तैयारी करते समय प्रयोग करतें हैं, इसके साथ-साथ one hundred fifty किलोग्राम नाइट्रोजन, eighty किलोग्राम फास्फोरस, एवं forty किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टर प्रयोग करतें हैं, इसके साथ ही 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टर प्रयोग करना चाहिए नाइट्रोजन कि 1/3 भाग मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश कि पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व कुंडो में डालते हैं, जिंक सल्फेट कि पूरी मात्रा खेत तैयार करते समय या पहली सिंचाई के बाद ओट आने पर पौधों के पास देकर गुडाई करनी चाहिए, शेष नाइट्रोजन कि मात्रा अप्रैल मई के माह में दो बार में समान हिस्सों में बाट कर प्रयोग करना चाहिए।

Ganne Ki Kheti का खरपतवार प्रबंधन

गन्ने की फसल में निराई एवं गुड़ाई और खरपतवार का नियंत्रण हमारे किसान भाई किस प्रकार करें,गन्ने के पौधों की जड़ों को नमी व वायु उपलब्ध करने हेतु तथा खरपतवार नियंत्रण को ध्यान में रखते हुए ग्रीष्म काल में प्रत्येक सिंचाई के बाद गुड़ाई फावड़ा, कस्सी या कल्टीवेटर से करना लाभदायक होता है, इसके साथ-साथ खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरंत बाद या एक या दो दिन बाद पैंडेमेथीलीन 30 ईसी की 3.3 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टर की दर से 700-800 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करना चाहिए जिससे कि खरपतवार गन्ने के खेत में उग ही ना सकें।

गन्ने की फसल को गिरने से बचाने हेतु मिटटी कब और कैसे चढाई जाती है 

गन्ने के पौधों या थान की जगह जड़ पर जून माह के अंत में हल्की मिटटी चढ़ानी चाहिए, इसके बाद जब फसल थोड़ी और बढवार कर चुके तब जुलाई के अंत में दुबारा पर्याप्त मिटटी और चढ़ा देना चाहिए, जिससे की वर्षा होने पर फसल गिर ना सके।

Ganne Ki Kheti का रोग प्रबंधन 

गन्ने की फसल में कौन कौन से रोग लगने की संभावना होती है, और उनकी रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए क्या उपाय करे गन्ने की खेती वानस्पतिक सवर्धन द्वारा या प्रोपोगेटेड मेथड द्वारा की जाती है, जिसमे अधिकांश रोग बीज गन्ने द्वारा फैलतें हैं, गन्ने की विभिन्न प्रजातियों में लगने वाले प्रमुख रोग जो की निम्न है, काना रोग, कन्डुआ रोग, उकठा रोग, अगोले का सडन रोग, पर्णदाह रोग, पत्ती की लाल धरी, वर्णन रोग आदि हैं, इनकी रोकथाम के लिए निम्न उपाए करने चाहिए-
     1.सबसे पहले तो रोग रोधी प्रजातियों की बुवाई करनी चाहिए।
     2.बीज गन्ने का चुनाव स्वस्थ एवं रोग रहित प्लांटो के टुकड़ों से बुवाई करनी चाहिए।
     3.रोगी पौधों या गन्ने को पूरा पूरा उखाड़ कर अलग कर देना चाहिए। जिससे संक्रमण दुबारा न हो सके 
     4.पेंडी रख कर फसल उत्पादन नहीं लेना चाहिए।
     5.फसल चक्र अपनाने चाहिए तथा रोग ग्रसित खेत को दुबारा कम से कम साल तक गन्ना नहीं बोना चाहिए
     6.जल निकाश की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए जिससे की वर्षा का पानी खेत में न रुक सके क्योंकि इससे रोग फैलतें हैं।
     7.रोग से प्रभावित खेत में कटाई के बाद पत्तियों एवं ठूंठों को जला कर नष्ट कर देना चाहिए।
     8.गन्ने की कटाई एवं सफाई के बाद गहरी जुताई करनी चाहिए।
     9.गन्ने के बीज को गर्म पानी में शोधित करके बोना चाहिए।
    10.गन्ने के बीज को रसायनों से उपचारित करके बोना चाहिए।

Ganne Ki Kheti का कीट प्रबंधन

गन्ने की फसल में कौन-कौन से कीट नुकसान पहुंचातें हैं, और उनका नियंत्रण हमारे किसान भाई किस प्रकार करें,गन्ने की फसल में कीट बुवाई से कटाई तक फसल को किसी भी अवस्था में नुकसान पहुंचाते हैं, जैसे की दीमक पेड़ो के कटे सिरों में, आँखों, किल्लों की जड़ से तथा गन्ने के भी जड़ से काट देता है तथा कटे स्थान पर भर देता है, इसके अलावा और भी कीट लागतें हैं जो कि निम्न हैं, जैसे अंकुर बेधक, चोटी बेधक, तना बेधक, गुरदासपुर बेधक, कला चिकटा, पैरिल्ला, शल कीट, ग्रास हापर, आदि हैं इन कीटो की रोकथाम के लिए गन्ने के बीज के टुकड़ों को शोधित करके बुवाई करनी चाहिए, सिंचाई कि समुचित व्यवस्था करनी चाहिए जिससे दीमक आदि कम लगते रहें, मार्च से मई तक अंडा समूह को एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिए, सूखी पत्तियों को गन्ने से निकाल कर जल देना चाहिए, मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर तक 15 दिन के अंतराल पर मोनोक्रोटोफास 2.1 लीटर प्रति हैक्टर की दर से 1250 ली० पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए, इसके अलावा क्लोरोफास 20 ईसी 1 लीटर अथवा रोगोर 30% 0.825 लीटर प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए, कटाई के बाद सूखी पत्तियों को बिछाकर जला देना चाहिए, जिससे कीटों के अंडे नष्ट हो जाएँ।

Ganne Ki Kheti की फसल कटाई

गन्ने की फसल की कटाई कब और कैसे करतें हैं फसल की आयु ,परिपक्वता, प्रजाति तथा बुवाई के समय के आधार पर नवम्बर से अप्रैल तक कटाई की जाती है, कटाई के पश्चात गन्ना को सीधे शुगर फेक्ट्री में भेज देना चाहिए, काफी समय रखने पर गन्ने का वजन घटने लगता है, तथा शुगर या सकर प्रतिशत कम हो जाता है यदि शुगर फेक्ट्री नहीं भेज जा सके तो उतने ही गन्ने की कटाई करनी चाहिए जिसका गुड़ बनाया जा सके ज्यादा कटाई पर नुकसान होता है।

गन्ने की पैदावार




गन्ने की उपज प्रजातियों के आधार पर अलग अलग पायी जाती है, शीघ्र पकने वाली प्रजातियाँ 80-90 टन प्रति हेक्टर उपज प्राप्त होती है, मध्य एवं देर से पकने वालीं प्रजातियाँ में 90-100 टन प्रति हेक्टर उपज प्राप्त होती है, जल प्लावित क्षेत्रों में पकने वाली प्रजातियाँ 80-90 टन प्रति हेक्टर उपज देती हैं।

दोस्तों आशा करता हु गन्ने की खेती से जुडी जानकारी मिल गई होगी इसके अलावा अन्य कोई सवाल है तो आप हमें कमेंट बॉक्स में पूछ सकते है हम जल्द ही आप का जवाब देंगे।

सोमवार, 23 जनवरी 2023

धनिया की खेती कैसे करे पूरी जानकारी जाने। Dhaniya Ki Kheti Kaise Kare In Hindi

 धनिया की खेती कैसे करे पूरी जानकारी जाने। Dhaniya Ki Kheti Kaise Kare In Hindi

Dhaniya Ki Kheti Kaise Kare - नमस्कार प्यारे किसान भाई आज की पोस्ट में हम बात करेंगे धनिया की खेती के बारे में जैसे Dhaniya ki kheti kaise hoti hai, साथ ही बात Dhaniya ki fasal से जुडी अहम् जानकारी भी शेयर करेंगे जैसे Dhaniya ki kheti ka samay, Dhaniya ki kheti at home, Dhaniya ki kheti ki jankari, Dhaniya ki kheti ki vidhi सब कुछ बताने वाले है इसलिए सभी किसान भाई Kheti Business पर बने रहे।



सभी किसान चाहते है की हम कुछ नये तरीके से फसल करे और अधिक लाभ कमाए लेकिन किसान के पास उपयुक्त जानकारी के अभाव के कारण अधिक पैदावार नहीं कर पाता है। इस वेबसाइट पर सभी जानकारी उपलब्ध है।


जलवायु और भूमि
धनिया की खेती के लिए जलवायु एवं भूमि किस प्रकार की होनी चाहिए ?

धनिया की खेती हरी पत्तियों के प्रयोग हेतु लगभग पूरे वर्ष की जाती है लेकिन बीज प्राप्त करने हेतु इसकी खेती रबी की फसल के साथ में करते है इसके लिए स्प्रिंग सीजन अच्छा रहता है। धनिया की खेती हेतु दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है अच्छे जीवांशयुक्त भारी भूमि में भी उगाई जा सकती है लेकिन जल निकास होना अति आवश्यक है।

प्रमुख प्रजातियाँ
धनियां की उन्नतशील प्रजातियां कौन-कौन सी होती है ?

धनियां में प्रजातियां जैसे की पूसा सेलेक्शन360, आर.सी.1, यू.डी.20 , यू.डी.21, पंत हरितमा, साधना, स्वाती, डी.एच.5, सी.जी.1, सी.जी.2, सिंधु , सी.ओ.1 , सी.ओ.2 एवं सी.ओ.3, सी.एस.287, आर. डी.44 एवं आजाद धनियां1 तथा आर.सी.आर.20, 41, 435, 436 एवं 446 आदि है।


खेत की तैयारी
धनियां की खेती करने हेतु हमें खेत की तैयारी किस प्रकार से करनी चाहिए ?

खेत की तैयारी के लिए खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में तीन से चार जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करते है खेत को समतल करके पाटा लगाकर भुरभुरा बना लेना चाहिए। आख़री जुताई में one hundred से one hundred twenty कुन्तल सड़ी गोबर की खाद को मिला देना चाहिए।

बीज बुवाई



धनिया की बुवाई में बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर कितनी लगती है तथा बीज शोधन किस प्रकार करना चाहिए ?
बीज की मात्रा बुवाई एवं सिंचाई की दशा पर निर्भर करती है। सिंचित दशा में बीज 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा असिंचित दशा में 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पड़ता है। बीज को three ग्राम थीरम या two ग्राम बेविस्टीन से प्रति किलोग्राम के हिसाब से बुवाई करने से पहले शोधित कर लेना चाहिएI बीज को बोने से पहले 12 घंटे पानी में भिगोकर बुवाई करनी चाहिए।

धनिया की बुवाई कब करनी चाहिए तथा बुवाई में कौन सी विधि अपनानी चाहिए ?

मैदानी क्षेत्रो में अक्टूबर से नवम्बर में बुवाई की जाती है। विधि में बुवाई लाइन से लाइन की दूरी 20 से 30 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखते हुए three से 5 सेंटीमीटर गहराई पर बुवाई करनी चाहिए।
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पोषण प्रबंधन
धनिया की फसल में खाद एवं उर्वरको की मात्रा कितनी लगती है तथा कब प्रयोग करना चाहिए ?

खेत की तैयारी करते समय a hundred से a hundred and twenty कुंतल गोबर की सड़ी खाद आख़िरी जुताई में मिला देना चाहिए। इसके साथ ही 60 किलोग्राम नत्रजन, forty किलोग्राम फास्फोरस तथा forty किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी करते समय आख़िरी जुताई में बेसल ड्रेसिंग में देना चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा का half भाग 25 दिन बाद बुवाई के तथा half of भाग forty दिन बाद बुवाई के बाद देना चाहिए।


जल प्रबंधन
धनिया की फसल में सिंचाई कब और कैसे करनी चाहिए ?

पूरी फसल में four - 5 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। पहली सिंचाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद करनी चाहिए। दूसरी 60 से 70 दिन, तीसरी eighty से ninety दिन, चौथी a hundred से one zero five दिन एवं पांचवी one hundred twenty दिन बाद करनी चाहिए।

खरपतवार प्रबंधन



धनिया की फसल की निराई-गुड़ाई कब करनी चाहिए और खरपतवार पर नियंत्रण हम किस प्रकार से कर सकते है ?

पहली सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करना चाहिए दूसरी पहली के 30 दिन बाद करना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरंत बाद एक दो दिन के अंदर 3.3 लीटर पेंडीमेथालीन को 800 से one thousand लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।


रोग प्रबंधन
धनिया की फसल में कौन-कौन से रोग लगते है तथा उनका नियंत्रण हमें किस प्रकार से करना चाहिए ?

धनिया में पाउडरी मिल्ड्यू, उकठा या विल्ट तथा तना पिटका रोग लगते है। इनको रोकने के लिए 0.3 प्रतिशत जल ग्राही सल्फर अथवा 0.06 प्रतिशत कैराथीन के घोल का छिड़काव करना चाहिए तथा अवरोधी प्रजातियों का प्रयोग करना चाहिए इसके साथ ही फसल चक्र भी अपनाना चाहिए।


कीट प्रबंधन
धनिया की फसल में जो कीट लग जाते है उन पर नियंत्रण हम कैसे पाये ?

धनिया में माहू या एफिड तथा पत्ती खाने वाले कीट लगते है इनको नियंत्रण करने हेतु 0.2 प्रतिशत कार्बेरिल घोल का छिड़काव करना चाहिए जिससे इन कीटो का असर न हो सके।


फसल कटाई



धनिया की फसल की कटाई एवं मड़ाई कब करनी चाहिए ?

हरी पत्तियो को बड़ी सावधानी से तुड़ाई करनी चाहिए जिससे कि तना सुरक्षित रहे एस तरह दो बार पत्तियां तोड़नी चाहिए लेकिन कभी-कभी पूरा पौधा भी हरी पत्तियो के प्रयोग में लाते है बीज प्राप्त करने हेतु जब पौधे पर बीज पककर सूख जावे तभी कटाई की जाती है और एक दो दिन खेत में डालकर सुखाने के बाद बीज की पिटाई करके अलग कर लिया जाता है।


पैदावार
धनिया की फसल से हरी पत्तिया एवं बीज की उपज कितनी प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है ?
हरी पत्तियो की उपज a hundred twenty five से a hundred and forty कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है तथा 10 से 12 कुंतल सूखी धनिया के बीज प्राप्त होते है।

आशा करता हु सभी किसान भाईओ की धनिया की खेती की पूरी जानकारी मिल गई है इसके अलावा कोई अन्य सवाल है तो आप हमे कमेंट बॉक्स में पूछ सकते है हम जल्द का जवाब देंगे।

शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

बड़ी इलायची के फायदे - Kali elaichi advantages in hindi

बड़ी इलायची के फायदे - Kali elaichi advantages in hindi

छोटी इलायची के फायदे की तरह ही बड़ी इलायची के फायदों (Kali elaichi advantages in hindi) की लिस्ट भी काफी बड़ी है। इसका इस्तेमाल मुख्य रुप से मसाले के रुप में किया जाता है। आइये इसके कुछ प्रमुख फायदों के बारे में जानते हैं।
1- दिल को स्वस्थ रखने में मदद (Cardamom for Heart health):
काली इलायची में ऐसे गुण होते हैं जो ह्रदय गति को नियंत्रित रखते हैं जिस वजह से ब्लड प्रेशर भी नियंत्रित रहता है। इसके अलावा ये खून के थक्के बनने से रोकती है। कुल मिलाकर इसके नियमित सेवन से दिल स्वस्थ रहता है और दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा कम होता है।
2- मुंह के संक्रमण और दांत दर्द से आराम (Cardamom for Oral health) :
अगर आप अक्सर मुंह में इन्फेक्शन या दांतों के दर्द से परेशान रहते हैं तो ऐसे में बड़ी इलायची आपके लिए एक कारगर औषधि साबित हो सकती है। इसको खाने से दाँतों और मसूड़ों का संक्रमण जल्दी ठीक होता है और दांतों के दर्द से आराम मिलता है। यह बेहतर तरीके से मुंह की देखभाल करती है।
3- मूत्र संबंधी रोगों में उपयोगी (Cardamom for UTI ) :
बड़ी इलायची में डायूरेटिक गुण होते हैं जिस वजह से यह मूत्र संबंधी रोगों जैसे कि मूत्र में जलन, मूत्र मार्ग में संक्रमण (यूटीआई) आदि समस्याओं में आराम पहुंचाती है। अपने इन्हीं गुणों की वजह से यह किडनी के लिए भी काफी फायदेमंद रहती है.
बड़ी इलायची की तासीर गर्म होती है। इसलिए बड़ी इलायची के फायदे (Cardamom Health Benefits) हासिल करने के लिए इसका सीमित मात्रा में ही सेवन करें, ज्यादा मात्रा आपको नुकसान पहुंचा सकती है। खुराक की अधिक जानकारी के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।

इलायची के फायदे (Cardamom Health Benefits in Hindi)

                          इलायची के फायदे  (Cardamom Health Benefits in Hindi)


बहुत से लोग यह जानना चाहते हैं कि इलायची खाने से सेहत को कुछ फायदा होता भी है या नहीं? आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इलायची के फायदों (Elaichi ke fayde in hindi) की लिस्ट काफी लम्बी है और अगर आप नियमित रुप से इलायची की उचित खुराक का सेवन कर रहे हैं तो निश्चित तौर पर यह आपको स्वस्थ रखने में मदद करती है। आइये छोटी इलायची के फायदों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

1- पाचन से जुड़ी समस्याओं से राहत (Cardamom for Digestion) :

खराब खानपान और जीवनशैली के कारण आजकल हर कोई अपच, गैस, एसिडिटी और कब्ज़ जैसी समस्याओं से पीड़ित रहता है। ऐसे में कुछ घरेलू उपाय आपकी इन समस्याओं को काफी हद तक कम कर सकते हैं। कब्ज़ और एसिडिटी दूर करना भी इलायची के फायदे (Elaichi ke fayde) में शामिल है। इलायची में ऐसे पोषक तत्व होते हैं जो पाचन तंत्र को दुरुस्त रखते हैं और पेट की जलन को कम करते हैं। जिससे एसिडिटी, अपच जैसी समस्याओं से आराम मिलता है।

2- हिचकी से आराम (Cardamom for Hiccups) :

अक्सर ऑफिस में काम करते समय या किसी से बात करते समय अचानक से हिचकी (Hiccups) आने लगती है और उस समय आपको समझ ही नहीं आता कि हिचकी से कैसे आराम पाएं। आपको बता दें कि ऐसी हालत में इलायची (Elaichi in hindi) आपके लिए काफी कारगर साबित हो सकती है। अगली बार जब हिचकी आये तो एक इलायची मुंह में डालें और कुछ देर तक उसे धीरे धीरे चबाते रहें, इससे हिचकी जल्दी बंद हो जाती है।

3- सर्दी-खांसी और गले की खराश से आराम (Cardamom for Throat infection) :

मौसम बदलने पर या किसी तरह के संक्रमण की वजह से अक्सर लोग सर्दी-खांसी की चपेट में आ जाते हैं। कमजोर इम्युनिटी क्षमता वाले लोग बहुत जल्दी सर्दी की चपेट में आते हैं। सर्दी होने पर गले में खराश होने लगती है। इलायची का सेवन खांसी और गले की खराश से आराम दिलाने में फायदेमंद होता है। यही कारण है कि खांसी और सर्दी-जुकाम दूर करने की सबसे प्रमुख आयुर्वेदिक औषधि सितोपलादि चूर्ण में भी इलायची मौजूद होती है।

खुराक :  गले की खराश दूर करने के लिए रात को सोने से पहले आधा से एक ग्राम इलायची चूर्ण (Cardamom in hindi) को शहद के साथ मिलाकर खाएं। दो तीन दिन इसका सेवन करने से गले की खराश ठीक हो जाती है।

4- ब्लड प्रेशर कम करने में मदद (Cardamom for Hypertension) :

एक अध्ययन के अनुसार, इलायची का रोजाना सेवन करने से ब्लड प्रेशर में कमी आती है। इस लिहाज से देखें तो जो लोग हाई ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशन के मरीज हैं उन्हें इलायची का नियमित सेवन करना चाहिए। इसमें मौजूद पोटैशियम और मैग्नीशियम जैसे खनिज पदार्थ ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने में मदद करते हैं।

5- अस्थमा (Cardamom for Asthma prevention) :

वैसे देखा जाए तो इलायची खाने के फायदे (Elaichi ke fayde) बहुत ज्यादा हैं। ब्लड प्रेशर कम करने और गले की खराश से आराम दिलाने के अलावा यह अस्थमा के मरीजों के लिए भी बहुत उपयोगी औषधि है। इलायची में ऐसे गुण पाए जाते हैं जो फेफड़ों में खून के प्रवाह को ठीक रखते हैं जिससे फेफड़े स्वस्थ रहते हैं और खांसी या अस्थमा जैसी बीमारियों से बचाव होता है।

6- भूख बढ़ाने में मदद :

इलायची पाचन तंत्र को दुरुस्त रखती है जिस वजह से शरीर का मेटाबोलिज्म भी ठीक ढंग से काम करता है और भूख बढ़ती है। जिन लोगों को समय पर भूख ना लगने या कम लगने की समस्या है उन्हें इलायची (Cardamom) का सेवन करना चाहिए।

7- मुंह की दुर्गंध दूर करने में सहायक (Cardamom for Bad breath) :

इलायची खाने के फायदे की बात की जाए तो हर किसी का जवाब यही होता है कि इससे मुंह की बदबू दूर होती है। यह बात पूरी तरह सच है और इसीलिए इलायची (Cardamom) का सबसे ज्यादा उपयोग माउथ फ्रेशनर के रूप में किया जाता है। अगर आप भी मुंह की बदबू से परेशान हैं तो इलायची के कुछ दाने ज़रुर खाएं।

8- उल्टी और मिचली से राहत (Cardamom for Nausea in Hindi) :

कुछ शोधों में इस बात की पुष्टि हुई है कि इलायची, सर्जरी के बाद आने वाली मिचली और उल्टी की समस्या से राहत दिलाती है। रिसर्च के अनुसार इलायची, अदरक और पुदीने को कॉटन की पट्टी में लपेटकर इसे सूंघने से सर्जरी के बाद होने वाली मिचली से आराम मिलता है। इसी तरह जिन लोगों को पहाड़ी रास्तों पर सफ़र के दौरान उल्टी या मिचली की समस्या होती है उन्हें सफर शुरु करने से पहले इलायची के कुछ दाने खाने चाहिए। यह मिचली और उल्टी रोकने का सबसे आसान घरेलू उपाय है।

9- नपुंसकता दूर करने में सहायक :

बहुत कम लोग यह जानते हैं कि छोटी इलायची खाने से नपुंसकता दूर करने में मदद मिलती है। इलायची में कामोत्तेजक गुण होते हैं और यह पुरुषों और महिलाओं दोनों की सेक्स की इच्छा बढ़ाने में मदद करती है। अगर आपकी सेक्स लाइफ नीरस हो गई है तो आप भी इलायची (Cardamom) का सेवन शुरु करें और अपनी सेक्स लाइफ को बेहतर बनाएं।

10- तनाव दूर करने में फायदेमंद (Cardamom for Stress) :

इलायची की सुगंध आपके मूड को तरोताजा बनाये रखती है। इसीलिए अधिकांश लोग सुबह सुबह इलायची की चाय (Cardamom tea) का सेवन करते हैं। इलायची की चाय पीने से पेट और सांसो से जुड़े रोगों से तो छुटकारा मिलता ही है साथ ही ये तनाव को दूर करती है और मूड को फ्रेश बनाये रखती है। इसलिए स्ट्रेस या डिप्रेशन के मरीजों को स्ट्रेस भगाने के लिए रोजाना इलायची वाली चाय (cardamom tea benefits) ज़रुर पीनी चाहिए। 

गुरुवार, 17 नवंबर 2022

आरोग्य वटी के फायदे, नुकसान,

 आरोग्य वटी के फायदे, नुकसान, उपयोग विधि और प्राइस






आरोग्य वटी, स्वामी रामदेव की पतंजलि दिव्य फार्मेसी में निर्मित आयुर्वेदिक दवा है। क्योंकि यह आरोग्य (बिना रोग) करने वाली गोली है इसलिए आरोग्य वटी कहलाती है।

इस दवा में केवल तीन हर्ब हैं, गिलोय, नीम और तुलसी। इस दवा का सेवन मुख्य रूप से शरीर की इम्युनिटी / रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।

गिलोय, नीम और तुलसी जैसे मजबूत एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण यह दवाई शरीर के सही काम करने में मदद करती है। इसके सेवन से ज्वर, कफ, त्वचा रोगों, प्रमेह आदि में लाभ होता है। नीम का रक्त साफ़ करने का गुण तो सर्वविदित है। नीम को तो सर्वरोगनिवारिण भी कहा जाता है। इसी प्रकार गिलोय आयुर्वेद की प्रमुख रसायन औषधि है। इसके सेवन से लीवर की रक्षा होती है और लीवर फंक्शन ठीक होता है। डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया आदि जैसे मच्छर जनित बुखारों में नीम और गिलोय के सेवन से अत्यंत लाभ होता देखा गया है। तुलसी भी अनेकों रोगों में लाभप्रद है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

·         निर्माता / ब्रांड: पतंजलि दिव्य फार्मेसी

·         उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।

·         दवाई का प्रकार: हर्बल आयुर्वेदिक दवाई

·         मुख्य उपयोग: रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना

·         मुख्य गुण: एंटीऑक्सीडेंट, रसायन और इम्युनिटी बूस्टर

·         दवा का अनुपान: गर्म जल

·         दवा को लेने का समय: दिन में दो बार, प्रातः और सायं

·         दवा को लेने की अवधि: कुछ महीने

·         मूल्य MRP: Arogya Vati forty gramme @ Rs. 60.00

आरोग्य वटी के घटक | Ingredients of Patanjali Arogya Vati in Hindi

1.        गिलोय Giloy extract 250 mg

2.        नीम nim tree one hundred twenty five mg

3.        तुलसी Tulsi one hundred twenty five mg

4.        Excpients –q.s.

जानिए दवा के घटकों के बारे में

1- गिलोय टिनोस्पोरा कोरडीफ़ोलिया



गिलोय आयुर्वेद की बहुत ही मानी हुई औषध है। इसे गुडूची, गुर्च, मधु]पर्णी, टिनोस्पोरा, तंत्रिका, गुडिच आदि नामों से जाना जाता है। यह एक बेल है जो सहारे पर कुंडली मार कर आगे बढती जाती है। इसे इसके गुणों के कारण ही अमृता कहा गया है। यह जीवनीय है और शक्ति की वृद्धि करती है। इसे जीवन्तिका भी कहा जाता है।

दवा के रूप में गिलोय के अंगुली भर की मोटाई के तने का प्रयोग किया जाता है। जो गिलोय नीम के पेड़ पर चढ़ कर बढती है उसे और भी अधिक उत्तम माना जाता है। इसे सुखा कर या ताज़ा ही प्रयोग किया जा सकता है। ताज़ा गिलोय को चबा कर लिया जा सकता है, कूंच कर रात भर पानी में भिगो कर सुबह लिया जा सकता है अथवा इसका काढ़ा बना कर ले सकते है। गिलोय को सुखा कर, कूट कर, उबाल कर और फिर जो पदार्थ नीचे बैठ जाए उसे सुखा कर जो प्राप्त होता है उसे घन सत्व कहते हैं और इसे एक-दो ग्राम की मात्रा में ले सकते हैं।

गिलोय वात-पित्त और कफ का संतुलन करने वाली दवाई है। यह रक्त से दूषित पदार्थो को नष्ट करती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। यह एक बहुत ही अच्छी ज्वरघ्न है और वायरस-बैक्टीरिया जनित बुखारों में अत्यंत लाभप्रद है। गिलोय के तने का काढ़ा दिन में तीन बार नियमित रूप से तीन से पांच दिन या आवश्कता हो तो उससे अधिक दिन पर लेने से ज्वर नष्ट होता है। किसी भी प्रकार के बुखार में लीवर पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में गिलोय का सवेन लीवर की रक्षा करता है।

·         मलेरिया के बुखार में इसके सेवन से बुखार आने का चक्र टूटता है।

·         यदि रक्त विकार हो, पुराना बुखार हो, यकृत की कमजोरी हो, प्रमेह हो, तो इसका प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

·         इसके अतिरित गिलोय को टाइफाइड, कालाजार, कफ रोगों, तथा स्वाइन फ्लू में भी इसके प्रयोग से आशातीत लाभ होता है।

2- नीम अजादिरीक्टा इंडिका



नीम को आयुर्वेद में निम्ब, पिचुमर्द, पिचुमंद, तिक्तक, अरिष्ट, पारिभद्र, हिंगू, तथा हिंगुनिर्यास कहा जाता है। इंग्लिश में इसे मार्गोसा और इंडियन लीलैक, बंगाली में निमगाछ निम्ब, गुजराती में लिंबडो, और हिंदी में नीम कहा जाता है। नीम को फ़ारसी में आज़ाद दरख्त कहा जाता है। नीम का लैटिन नाम मेलिया अजाडीरीक्टा या अजाडीरीक्टा इंडिका है।

नीम शीत वीर्य/स्वभाव में ठंडा (बीज, तेल छोड़ कर), कड़वा, पित्त और कफशामक, और प्रमेह नाशक है। यह खांसी, अधिक कफ, अधिक पित्त, कृमि, त्वचा विकारों, अरुचि, व्रण आदि में लाभकारी है। नीम के पत्ते, आँखों के लिए हितकारी, वात-कारक, पाक में चरपरे, हर तरह की अरुचि, कोढ़, कृमि पित्त और विष नाशक हैं।

3- तुलसी ओसिमम संकटम



तुलसी की पत्तियों के स्वास्थ्य लाभ के बारे में तो सभी को पता है। यह गुणों की खान है और इसके फायदों के बारे में तो पूरी- पूरी किताबें लिखी जा सकती है। तुलसी के पत्तो के सेवन से सर्दी, खांसी, जुखाम, बुखार, इम्युनिटी की कमी, तथा अनेकों तरह के रोग दूर होते हैं। यह मन को शांत रखते हैं और अवसाद तथा तनाव को दूर करते हैं। तुलसी के पत्तों का सेवन उर्जा देता है, हार्मोन का संतुलन करता है, संक्रमण से बचाता है, और तनाव को दूर करता है।

तुलसी एक प्रबल antihistaminic है जो bronchospasms पराग-प्रेरित अस्थमा को रोकने में बहुत उपयोगी है | पवित्र तुलसी में नाइट्रिक ऑक्साइड पाया जाता है, जो की एक बहुत अच्छा inhibitor inhibitor | यह एलर्जी श्वसन विकारों के उपचार में उपयोगी है।

आरोग्य वटी के फायदे | edges of Patanjali Arogya Vati in Hindi

1.        यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।

2.        यह लीवर फंक्शन को सही करती है इसके सेवन से कोलेस्ट्रोल, ट्राइग्लिसराइड लेवल, beta-lipoprotein beta-lipoprotein beta-lipoprotein beta-lipoprotein beta-lipoprotein

3.        यह आंतों से विषाक्तता बाहर करती है।

4.        यह यकृत को स्वस्थ करती है।

5.        यह रसायन, दीपन, पाचन, शरीर से गन्दगी निकलने वाली, और मल को साफ़ करने वाली दवा है।

6.        यह वात और कफ दोष को संतुलित करती है।

7.        यह शरीर में फ्री रेडिकल का बनना कम करती है।

8.        यह लीवर फंक्शन को सही करती है।

9.        यह लीवर की रक्षा करती है।

10.     इसके सेवन से आरोग्य आता है।

आरोग्य वटी के चिकित्सीय उपयोग | Uses of Patanjali Arogya Vati in Hindi

1.        पुराना बुखार / क्रोनिक फीवर Jirna jvara (Chronic fever)

2.        वात-पित्त-कफ दोषों के कारण उत्पन्न बुखार

3.        इन्फेक्शन जो की इम्युनिटी की कमी के कारण बार-बार होते हैं

4.        चमड़ी के रोग

5.        इम्युनिटी की कमी

6.        मच्छर जनित बुखार (डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया)

7.        स्वाइन फ्लू

8.        शारीरिक, मानसिक कमजोरी

9.        यकृत रोग

10.     यकृत कमजोरी

11.     रक्त शर्करा का बढ़ा स्तर

12.     गठिया, यूरिक एसिड का बढ़ जाना

आरोग्य वटी की सेवन विधि और मात्रा | dose of Patanjali Arogya Vati in Hindi

1.        1-2 गोली, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।

2.        इसे पानी के साथ लें।

3.        इसे भोजन करने के बाद लें।

4.        या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications in Hindi

1.        इस दवा में गिलोय, नीम और तुलसी हैं जिन्हें लेना पूरी तरह से सुरक्षित है।

2.        इसे लम्बे समय तक लिया जा सकता है।

3.        इसके सेवन का कोई हानिप्रद प्रभाव नहीं है।

4.        दवाई के स्थान पर आप गिलोय के तने, नीम और तुलसी के पत्ते को पानी मन उबाल कर काढ़ा बनाकर भी पी सकते हैं।

5.        यदि बुखार के लिए इसका सेवन कर रहे हो तो काढ़े का सेवन अच्छे परिणाम देगा।

6.        स्तनपान के दौरान इसका सेवन करने से कोई दुष्प्रभाव नहीं है।

7.        गर्भावस्था में किसी भी दवा का सीवन बिना डॉक्टर की सलाह पर न करें।

गुरुवार, 10 नवंबर 2022

Kalonji Ke fyde


    


Nigella (Kalonji Seeds)

The kalonji, or flower seeds, is a motivating spice – once used for tempering, it adds a good looking aroma to the dishes, and a touch of flavour that you just can’t quite nail. In India, dry cooked kalonji is employed for seasoning curries, dal, stir-fried vegetables, and even savouries like turnover, papdis and kachori among others. Flavour and aroma aside, the small black seed comes with a full heap of health edges. It’s loaded with trace parts, vitamins, crystalline nigellone, amino acids, saponin, crude fiber, proteins and fatty acids like linolenic and oleic acids, volatile oils, alkaloids, iron, sodium, metal and metallic element. It keeps your heart healthy, addresses respiration downside, lubricates your joints, and is thought to own anti-carcinogenic properties. That’s quite an heap for a seed that size, isn’t it? really, if you retain a bottle of kalonji oil reception, you'll use them for lots of things to spice up your health and pay attention of Mickey Mouse issues. 

Let’s take a glance at some edges of kalonji. Health edges of Kalonji (Nigella Seeds)

1. Fights disease of the skin Citrus limetta juice and kalonji oil along will fix several skin issues. for each cup of Citrus limetta juice, you’ll would like concerning [*fr1] a teaspoon of kalonji oil. Apply the oil double on a daily basis on your face and watch your blemishes and disease of the skin disappear. If you retain pure kalonji oil handy, you'll use it to treat cracked heels further.

2. Keeps a Check on polygenic disease this can be in all probability one in all the foremost better-known edges of kalonji. If you have already got polygenic disease, kalonji oil also can facilitate to manage it. Take [*fr1] a teaspoon of the oil in an exceedingly cup of tea leaf each morning, and see the distinction in an exceedingly few weeks.(Also Read: five Vegetables you want to embody In Your polygenic disease Diet)

3. will increase Memory and Alleviates bronchial asthma Ground kalonji seeds with a touch little bit of honey is thought to spice up memory. And if you combine this in heat water and drink, it additionally helps in assuaging respiration bother (asthma included) in youngsters and adults alike. however you wish to try to to this can be for a minimum of forty five days, and avoid cold beverages and food throughout the amount.(Also Read: Foods to spice up Your Memory. keep in mind To Eat These!)

4. Gets obviate Headaches one in all the foremost common urban issues in today’s time is headaches. rather than sound a pill, rub kalonji oil on your forehead, relax, and look ahead to your headache to disappear. Nothing like natural home remedies!(Also Read: ten Natural Home Remedies For Headaches that truly Work​)

5. Aids Weight Loss the nice and cozy water, honey, and lemon combination is commonly suggested for those that area unit on a diet. currently add a pinch of fine-grained kalonji seeds to the present combine and see however it works. several health enthusiasts have claimed that kalonji seeds could be a miracle ingredient that helps in shedding those further kilos.

6. Eases Joint Pain It’s AN old-school treatment; take one or two of kalonji seeds, and warmth it well with mustard oil. Once the oil is smoking, take it off the flame and funky it down for a small amount. The oil is prepared once you will dip the tip of a finger into the oil while not feeling uncomfortable. currently use this oil to massage the inflamed joint.

7. Controls vital sign For those that suffer from or have the tendency of high vital sign will drink [*fr1] a teaspoon of kalonji oil with heat water to stay high blood pressure in restraint. it's in fact suggested to follow a correct diet beside it.

8. Protects the urinary organ urinary organ stones area unit a typical urban downside. it's same that [*fr1] a teaspoon of kalonji oil had with 2 teaspoons of honey and heat water will aid in obtaining obviate urinary organ pain, stones and infections. however you furthermore may got to consult a doctor to induce a correct diet.

9. Makes Teeth Stronger Did you recognize that kalonji has been used historically to require care of dental bother like swelling or hemorrhage of gums, and weak teeth? in fact you wish to ascertain a medical man, however you'll additionally massage your teeth with curd and a few kalonji oil double on a daily basis to strengthen your gums.(Also Read: Beware! These five Foods area unit better-known to Stain Your Teeth)

10. Strengthens ImmunityKalonji oil, honey and heat water have over one profit. with the exception of those already mentioned, it also can facilitate to strengthen your immunity if consumed daily. If you add kalonji oil in boiling water and inhale the fumes, it also can cut back nasal congestion, and facilitate those that suffer from rubor issues.

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