रविवार, 29 जनवरी 2023

गन्ने की खेती कैसे करे पूरी जानकारी जाने। Ganne Ki Kheti Kaise Kare In Hindi

             गन्ने की खेती कैसे करे पूरी जानकारी जाने। Ganne Ki Kheti Kaise Kare In Hindi

Ganne Ki Kheti Kaise Kare In Hindi - नमस्कार प्यारे किसान भाई आज की पोस्ट में हम बात करेंगे Ganne Ki Kheti के बारे इसके साथ ही आप को Ganne Ki Kheti Jankari मिलने वाली है। कई किसान को पता नहीं होता है की Ganne Ki Kheti Kab Hoti Hai और गन्ने की खेती करने की विधि की जानकारी शेयर करेंगे तो बने रहे हमारे साथ Kheti Business पर तो चलिए आज कुछ नया सिख लेते है।




हमारे देश में गन्ना प्रमुख रूप से नकदी फसल के रूप में उगाया जाता है, जिसकी खेती प्रति वर्ष लगभग 30 लाख हेक्टर भूमि में की जाती है, इस देश में औसत उपज 65.4 टन प्रति हेक्टर है, जो की काफी कम है, यहाँ पर मुख्य रूप से गन्ना द्वारा ही चीनी व गुड बनाया जाता है।

Ganne Ki प्रमुख प्रजातियाँ

गन्ने की उन्नतशील प्रजातियाँ कौन-कौन सी उगाई जाती हैं ?

उत्तर प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रो के लिए गन्ने की विभिन्न प्रजातियाँ स्वीकृत हैं,शीघ्र पकने वाली कोयम्बटूर, शाहजहांपुर 8436, 88230,95255, 96268, 98231, 95436 एवं कोयम्बटूर सेलेक्शन-00235 तथा 01235 आदि हैं इसी तरह से मध्य एवं देर से पकने वाली प्रजातियाँ कोयम्बटूर शाहजहांपुर 8432, 94257, 84212, 97264, 95422, 96275, 97261, 96269, 99259
एवं यू. पी. 97 जिसे ह्रदय भी कहते हैं, यू. पी.-22 कोयम्बटूर पन्त 84212 तथा कोयम्बटूर सेलेक्शन 95422, व 96436 आदि हैं, इसी तरह से देर से बोई जाने वाली प्रजातियाँ कोयम्बटूर शाहजहांपुर 88230, 95255, यू पी-39 तथा कोयम्बटूर सेलेक्शन 92423 आदि हैंI
सीमित सिंचाई क्षेत्र हेतु कोयम्बटूर शाहजहांपुर 28216, 96275, कोयम्बटूर सेलेक्शन 92423,एवं यू. पी.-39 आदि हैं क्षारीय भूमि में पैदा करने हेतु कोयम्बटूर सेलेक्शन 92263 है जल प्लावन क्षेत्र के लिए यू. पी. 9530 एवं कोयम्बटूर सेलेक्शन 96236 आदि हैं,
इसी प्रकार से सीमित कृषि साधन क्षेत्र हेतु कोयम्बटूर सेलेक्शन 88216, 94275, 95255 आदि है,लेकिन एक बहुत ही ध्यान देने योग्य बात है, कोयम्बटूर सेलेक्शन-767 एक ऐसी प्रजाति है,जो की लगभग सभी परिस्थितियों में उगाई जा सकती है।

Ganne Ki Kheti के लिए उपयुक्त जलवायु

गन्ने की खेती के लिए अनुकूल जलवायु और भूमि किस प्रकार की होनी चाहिए ?

गन्ने की बुवाई के समय 30-35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान होना चाहिए, साथ ही वातावरण शुष्क होने पर बुवाई करनी चाहिए, गन्ना की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन दोमट भूमि सर्वोतम मानी जाती है, गन्ने के खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए, यहाँ तक की गन्ने की खेती अच्छे जल निकास वाली चिकनी भूमि में भी की जा सकती है।

Ganne के खेत की तैयारी
फसल के लिए खेत की तैयारी किस प्रकार करें ? खेत को 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करके भुरभुरा बना लेना चाहिए आखिरी जुताई में 200-250 कुंतल सड़ी गोबर की खाद खेत में मिलकर तैयार करना चाहिए।

Ganne की बीज बुवाई






गन्ने की खेती के लिए गन्ने के बीज का चुनाव और मात्रा तथा गन्ने का शोधन हमे कैसे करना चाहिए ?
शुद्ध रोग रहित व कीट मुक्त गन्ना अच्छे खेत से स्वस्थ बीज का चुनाव करें, गन्ने के 1/3 उपरी भाग का जमाव अच्छा होता है, गन्ने की मोटाई के अनुसार बीज की मात्रा कम ज्यादा होती है, 50-60 कुंतल लगभग 37500, तीन आंख वाले टुकड़े पैंडे, जिसे कहते हैं प्रति हेक्टर लगते हैं, अधिक देर से बुवाई करने पर डेढ़ गुना बीज की आवश्यकता पड़ती है, दो आँख वाले पैंडे 56000 प्रति हेक्टर लगते हैं, पारायुक्त रसायन जैसे ऐरीटान 6% या ऐगलाल 3% कॉपर सल्फेट कहतें हैं, कि क्रमशः 250 ग्राम या 560 ग्राम अथवा बाविस्टीन कि 112 ग्राम मात्र प्रति हैक्टर कि दर से 112 लीटर पानी में घोल बनाकर गन्ने के टुकड़ों या पैंडे को उपचारित करना चाहिए।

गन्ने की बुवाई के लिए कौन सी विधि का प्रयोग करें

गन्ने की बुवाई हल के पीछे लाइनों में करनी चाहिए, लाइन से लाइन की दूरी बुवाई में मौसम एवं समय के आधार पर अलग-अलग रखी जाती है, शरद एवं बसंत की बुवाई में ninety सेंटीमीटर तथा देर से बुवाई करने पर 60 सेंटीमीटर लाइन से लाइन की दूरी रखी जाती है, तथा पैंडे से पैंडे की दूरी 20 सेंटीमीटर दो आंख वाले गन्ने की रखी जाती है।

Ganne Ki Kheti का जल प्रबंधन

गन्ने की फसल की सिंचाई कब और किस समय करनी चाहिए, और कितनी मात्रा में करनी चाहिए सिंचाई, बुवाई एवं क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग समय एवं तरीके से की जाती है, प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में 4-5, मध्य क्षेत्र में 5-6, तथा पश्चिमी क्षेत्र में 7-8, सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है, इसके साथ ही दो सिंचाई वर्षा के बाद करना लाभप्रद पाया गया है।

Ganne Ki Kheti का पोषण प्रबंधन

गन्ने की फसल में खाद एवं उर्वरक कितनी,कब, और कैसे प्रयोग में लायी जा सकती है गन्ने की अच्छी उपज पाने हेतु गोबर की खाद का प्रयोग खेत तैयारी करते समय प्रयोग करतें हैं, इसके साथ-साथ one hundred fifty किलोग्राम नाइट्रोजन, eighty किलोग्राम फास्फोरस, एवं forty किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टर प्रयोग करतें हैं, इसके साथ ही 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टर प्रयोग करना चाहिए नाइट्रोजन कि 1/3 भाग मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश कि पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व कुंडो में डालते हैं, जिंक सल्फेट कि पूरी मात्रा खेत तैयार करते समय या पहली सिंचाई के बाद ओट आने पर पौधों के पास देकर गुडाई करनी चाहिए, शेष नाइट्रोजन कि मात्रा अप्रैल मई के माह में दो बार में समान हिस्सों में बाट कर प्रयोग करना चाहिए।

Ganne Ki Kheti का खरपतवार प्रबंधन

गन्ने की फसल में निराई एवं गुड़ाई और खरपतवार का नियंत्रण हमारे किसान भाई किस प्रकार करें,गन्ने के पौधों की जड़ों को नमी व वायु उपलब्ध करने हेतु तथा खरपतवार नियंत्रण को ध्यान में रखते हुए ग्रीष्म काल में प्रत्येक सिंचाई के बाद गुड़ाई फावड़ा, कस्सी या कल्टीवेटर से करना लाभदायक होता है, इसके साथ-साथ खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरंत बाद या एक या दो दिन बाद पैंडेमेथीलीन 30 ईसी की 3.3 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टर की दर से 700-800 लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करना चाहिए जिससे कि खरपतवार गन्ने के खेत में उग ही ना सकें।

गन्ने की फसल को गिरने से बचाने हेतु मिटटी कब और कैसे चढाई जाती है 

गन्ने के पौधों या थान की जगह जड़ पर जून माह के अंत में हल्की मिटटी चढ़ानी चाहिए, इसके बाद जब फसल थोड़ी और बढवार कर चुके तब जुलाई के अंत में दुबारा पर्याप्त मिटटी और चढ़ा देना चाहिए, जिससे की वर्षा होने पर फसल गिर ना सके।

Ganne Ki Kheti का रोग प्रबंधन 

गन्ने की फसल में कौन कौन से रोग लगने की संभावना होती है, और उनकी रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए क्या उपाय करे गन्ने की खेती वानस्पतिक सवर्धन द्वारा या प्रोपोगेटेड मेथड द्वारा की जाती है, जिसमे अधिकांश रोग बीज गन्ने द्वारा फैलतें हैं, गन्ने की विभिन्न प्रजातियों में लगने वाले प्रमुख रोग जो की निम्न है, काना रोग, कन्डुआ रोग, उकठा रोग, अगोले का सडन रोग, पर्णदाह रोग, पत्ती की लाल धरी, वर्णन रोग आदि हैं, इनकी रोकथाम के लिए निम्न उपाए करने चाहिए-
     1.सबसे पहले तो रोग रोधी प्रजातियों की बुवाई करनी चाहिए।
     2.बीज गन्ने का चुनाव स्वस्थ एवं रोग रहित प्लांटो के टुकड़ों से बुवाई करनी चाहिए।
     3.रोगी पौधों या गन्ने को पूरा पूरा उखाड़ कर अलग कर देना चाहिए। जिससे संक्रमण दुबारा न हो सके 
     4.पेंडी रख कर फसल उत्पादन नहीं लेना चाहिए।
     5.फसल चक्र अपनाने चाहिए तथा रोग ग्रसित खेत को दुबारा कम से कम साल तक गन्ना नहीं बोना चाहिए
     6.जल निकाश की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए जिससे की वर्षा का पानी खेत में न रुक सके क्योंकि इससे रोग फैलतें हैं।
     7.रोग से प्रभावित खेत में कटाई के बाद पत्तियों एवं ठूंठों को जला कर नष्ट कर देना चाहिए।
     8.गन्ने की कटाई एवं सफाई के बाद गहरी जुताई करनी चाहिए।
     9.गन्ने के बीज को गर्म पानी में शोधित करके बोना चाहिए।
    10.गन्ने के बीज को रसायनों से उपचारित करके बोना चाहिए।

Ganne Ki Kheti का कीट प्रबंधन

गन्ने की फसल में कौन-कौन से कीट नुकसान पहुंचातें हैं, और उनका नियंत्रण हमारे किसान भाई किस प्रकार करें,गन्ने की फसल में कीट बुवाई से कटाई तक फसल को किसी भी अवस्था में नुकसान पहुंचाते हैं, जैसे की दीमक पेड़ो के कटे सिरों में, आँखों, किल्लों की जड़ से तथा गन्ने के भी जड़ से काट देता है तथा कटे स्थान पर भर देता है, इसके अलावा और भी कीट लागतें हैं जो कि निम्न हैं, जैसे अंकुर बेधक, चोटी बेधक, तना बेधक, गुरदासपुर बेधक, कला चिकटा, पैरिल्ला, शल कीट, ग्रास हापर, आदि हैं इन कीटो की रोकथाम के लिए गन्ने के बीज के टुकड़ों को शोधित करके बुवाई करनी चाहिए, सिंचाई कि समुचित व्यवस्था करनी चाहिए जिससे दीमक आदि कम लगते रहें, मार्च से मई तक अंडा समूह को एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिए, सूखी पत्तियों को गन्ने से निकाल कर जल देना चाहिए, मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर तक 15 दिन के अंतराल पर मोनोक्रोटोफास 2.1 लीटर प्रति हैक्टर की दर से 1250 ली० पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए, इसके अलावा क्लोरोफास 20 ईसी 1 लीटर अथवा रोगोर 30% 0.825 लीटर प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए, कटाई के बाद सूखी पत्तियों को बिछाकर जला देना चाहिए, जिससे कीटों के अंडे नष्ट हो जाएँ।

Ganne Ki Kheti की फसल कटाई

गन्ने की फसल की कटाई कब और कैसे करतें हैं फसल की आयु ,परिपक्वता, प्रजाति तथा बुवाई के समय के आधार पर नवम्बर से अप्रैल तक कटाई की जाती है, कटाई के पश्चात गन्ना को सीधे शुगर फेक्ट्री में भेज देना चाहिए, काफी समय रखने पर गन्ने का वजन घटने लगता है, तथा शुगर या सकर प्रतिशत कम हो जाता है यदि शुगर फेक्ट्री नहीं भेज जा सके तो उतने ही गन्ने की कटाई करनी चाहिए जिसका गुड़ बनाया जा सके ज्यादा कटाई पर नुकसान होता है।

गन्ने की पैदावार




गन्ने की उपज प्रजातियों के आधार पर अलग अलग पायी जाती है, शीघ्र पकने वाली प्रजातियाँ 80-90 टन प्रति हेक्टर उपज प्राप्त होती है, मध्य एवं देर से पकने वालीं प्रजातियाँ में 90-100 टन प्रति हेक्टर उपज प्राप्त होती है, जल प्लावित क्षेत्रों में पकने वाली प्रजातियाँ 80-90 टन प्रति हेक्टर उपज देती हैं।

दोस्तों आशा करता हु गन्ने की खेती से जुडी जानकारी मिल गई होगी इसके अलावा अन्य कोई सवाल है तो आप हमें कमेंट बॉक्स में पूछ सकते है हम जल्द ही आप का जवाब देंगे।

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