सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

किस महीने में कौन सी सब्जी लगाने से अधिक फायदा होताहै

                       

                                       किस महीने में कौन सी सब्जी लगाने से अधिक फायदा होताहै 




जनवरी
राजमा, शिमला मिर्च, मूली, पालक, बैंगन, चप्‍पन कद्दू

फरवरी
राजमा, शिमला मिर्च, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, फूलगोभी, बैंगन, भिण्‍डी, अरबी, एस्‍पेरेगस, ग्‍वार

मार्च
ग्‍वार, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, भिण्‍डी, अरबी

अप्रैल
चौलाई, मूली

मई
फूलगोभी, बैंगन, प्‍याज, मूली, मिर्च

जून
फूलगोभी, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, बीन, भिण्‍डी, टमाटर, प्‍याज, चौलाई, शरीफा जुलाई
खीरा-ककड़ी-लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, भिण्‍डी, टमाटर, चौलाई, मूली

अगस्‍त
गाजर, शलगम, फूलगोभी, बीन, टमाटर, काली सरसों के बीज, पालक, धनिया, ब्रसल्‍स स्‍प्राउट, चौलाई 

सितम्‍बर
गाजर, शलगम, फूलगोभी, आलू, टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्‍ता गोभी, कोहीराबी, धनिया, सौंफ के बीज, सलाद, ब्रोकोली

अक्‍तूबर
गाजर, शलगम, फूलगोभी, आलू, टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्‍ता गोभी, कोहीराबी, धनिया,
सौंफ के बीज, राजमा, मटर, ब्रोकोली, सलाद, बैंगन, हरी प्‍याज, ब्रसल्‍स स्‍प्राउट, लहसुन

नवम्‍बर
चुकन्‍दर, शलगम, फूलगोभी, टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्‍ता गोभी, शिमला मिर्च, लहसुन, प्‍याज, मटर, धनिया

दिसम्‍बर
टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्‍ता गोभी, सलाद, बैंगन, प्‍याज

बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

पालक की खेती Palak Ki Kheti (Spinach farming)

पालक की खेती (Spinach farming)



यह एक ऐसी सब्जी है जिससे कम समय में और कम खर्च में अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है. (Palak Ki Kheti) .

पालक के पत्तों में आयरन, प्रोटीन, खनिज-लवण और एंटीऑक्सीडेंट प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं. इसका सेवन शरीर के लिए काफी लाभदायक है. यह पाचन के लिए, त्वचा, बाल, आंखों और दिमाग के स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है. इसका पकौड़े बनाने, सलाद, साग, रायता बनाने के लिए किया जाता है.


जलवायु (Climate)

पालक की खेती के लिए सर्दियों के मौसम को उत्तम माना गया है.

बीज अंकुरण के लिए 20 डिग्री तापमान होना चाहिए.

पालक की पत्तियाँ अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 5 डिग्री तापमान को आसानी से सहन कर लेती है.

सर्दियों के मौसम में गिरने वाले पाले को इसके पौधे आसानी से सहन कर लेते है.

मिटटी का ph 6.0 और 6.7 के बीच होना चाहिए.

खेत में उचित जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए.

खेत की तैयारी (Field Preparation) 

पालक की खेती के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने हाल से करें. जिससे खेत में मौदूज खरपतवार और कीट नष्ट हो जाए 

खाद डालने के बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करें.

इसके बाद कल्टीवेटर से खेत की 2-3 बार आडी-तिरछी गहरी जुताई कर खेत को पाटा लगाकर समतल कर लें.

पालक की खेती में बुआई का समय (Spinach Cultivation Sowing Time) 

रबी में\sबुआई का समय: 1 सितंबर से 31 दिसंबर के बीच\sफसल अवधि: 40 से 50 दिन

जायद में\sबुआई का समय: 1 फ़रवरी से 31 मार्च के बीच\sफसल अवधि: 35 से 50 दिन

पालक की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Spinach) 

Pakistani Green: बिजाई के 30 से 35 दिन बाद यह वैरायटी तैयार हो जाती है इसका रंग गहरे चमकीले रंग का होता है. इससे औसतन पैदावार 125 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो जाती है.

(Pusa Palak) 40 to 45,  इसमें जल्दी से फूल वाले डंठल बनने की समस्या नहीं आती है.

The following (Pusa Green): इस किस्म के पौधे ऊपर की तरफ बढ़ने वाले, ओजस्वी, गहरे हरे रंग के और बड़े आकार की पत्तियाँ होती है.

(All green) इस फसल से 6 से 7 कटाइयां आसानी से ली जा सकती है.

बनर्जी जाइंट: इस वैरायटी के पत्ते काफी बड़े, मोटे, तथा मुलायम होती है.

जोबनेर ग्रीन: इस किस्म के पत्ते एक समान हरे , बड़े , मोटे , रसीले तथा मुलायम होते है.

पालक की अन्य वैरायटी: हिसार सलेक्शन-23, पूसा ज्योति, पंजाब सलेक्शन, पंजाब ग्रीन

पालक की खेती के लिए बीज की मात्रा (Seed rate for spinach cultivation) 

पालक की एक एकड़ फसल के लिए 8 से 10 किलोग्राम पालक के बीज (Spinach seeds) की आवश्यकता होती है

पालक के बीज उपचार (Spinach Seed Treatment) 

बीज अंकुरण की प्रतिशतता बढ़ाने के लिए बुवाई से पहले बीज को उपचारित करना चाहिए. लेकिन बुवाई के लिए हाइब्रिड बीज को उपचारित करने की कोई जरुआत नहीं है सीधे इसकी बुवाई कर सकते है. यदि बीज घर पर बनाया है तो बीज को उपचारित करने की आवश्यकता होती है बीज को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम + थिरम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें. इससे बीजों के अंकुरण की क्षमता बढ़ती है

पालक की बुआई का तरीका (Spinach Sowing Method) 

पालक की बुवाई के दौरान पौधे से पौधे की दूरी 1 से 1.5 सेमी और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 10 से 20 सेमी होनी चाहिए. नमी के हिसाब से बीज को 2.5 सेमी की गहराई से बुवाई करें.



पालक की खेती उर्वरक व खाद प्रबंधन (Spinach Farming Fertilizer and Manure Management) 

पालक की बुवाई के समय 10 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फॉस्फोरस व 25 किलोग्राम पोटाश को प्रति एक एकड़ के हिसाब से खेत में डालें\sबुवाई के 20 से 25 दिनों बाद: फसल में 20 किलोग्राम यूरिया को प्रति एकड़ के हिसाब से डालें.

पालक की खेती में सिंचाई (Irrigation in Spinach Cultivation)

गर्मी के महीने में, 4-6 दिनों के फासले पर सिंचाई करें

सर्दियों में 10-12 दिनों के फासले पर सिंचाई करें

पालक की खेती के लिए ड्रिप सिंचाई लाभदायक सिद्ध होती है.

पालक की फसल के लिए खेत में पर्याप्त नमी बने रहना चाहिए.

पालक की फसल में खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण के लिए पालक की फसल में नराई/गुड़ाई करनी चाहिए. खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल में रासायनिकों का इस्तेमाल अपने कृषि वैज्ञानिक की सलाह पर छिड़काव करें.

मैलाथियॉन के छिड़काव के 7 दिनों के बाद कटाई करें\sपत्तों पर गोल धब्बे:- यदि पालक की पत्तियों पर छोटे गोलाकार धब्बे और पत्तों पर के किनारों पर सलेटी और लाल रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, तो कार्बेनडाजिम 400 ग्राम या इंडोफिल एम-45, 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें. आवश्यकतानुसार 15 दिनों के अंतराल पर दूसरी छिड़काव करें.


मशरूम की उन्नत खेती कैसे करें

मशरूम की उन्नत खेती कैसे करें Mushroom Ki Kheti



यहाँ पर हम मशरूम की तीन वैरायटी की बारे चर्चा करेंगे जो कि कम लागत में अच्छी उपज देती हैं |

(Mushroom Ki Kheti) - जैसे-जैसे मनुष्य मानसिक एवं आधुनिक युग की तरफ अग्रसर होता जा रहा है ठीक उसी तरह से शरीर के लिये पोषक-तत्व युक्त, गुणकारी, स्वादिष्ट, उपयोगी सब्जी भी अपने भोजन में लेना पसन्द करता है ।


मशरूम के फायदे हैं Benefits of Mushroom

ऐसी सब्जी जिसमें अधिक से अधिक गुण व उपयोगी हो, वह सब्जी केवल ”मशरूम सब्जी” ही कही जा सकती है क्योंकि यह सब्जी काफी मात्रा में प्रोटीन, खनिज लवण, विटामिन ‘बी’, ‘सी’ व ‘डी’ उपलब्ध कराती है । मशरूम खाने में बहुत स्वादिष्ट एवं पाचनशील होती है । यहां तक कि इसमें फल और सब्जी की तुलना में प्रोटीन की अधिक मात्रा होती है ।



इसमें फोलिक-अम्ल की उपलब्धता शरीर में रक्त बनाने में अधिक मदद करती है । इसका सेवन मनुष्य के रक्तचाप, हृदयरोग, रक्त की कमी को पूरा करने मे लाभकारी रहता है ।

मशरूम का उपयोग अनेक भोज्य पदार्थों में किया जाता है । यह आजकल अधिक प्रचलित होने से लगभग सभी स्थानों में उपलब्ध होती है । (Mixed Vegetables) -

इसके अतिरिक्त दाल, राजमा, आलू टमाटर, मटर आदि के साथ सब्जी के रूप में खाते हैं तथा सूप चावल के साथ पुलाव तथा चाइनीज-फूड में अधिक प्रयोग किया जाता है । इसको कई स्थानों पर खुम्भी के नाम से भी जानते हैं ।


मशरूम की खेती में सावधानियां (Mushroom Ki Kheti) (Mushroom Ki Kheti)

मशरूम की खेती के लिये कुछ मुख्य विशेष सावधानियां हैं जिनकी जानकारी आवश्यक है । क्योंकि इस सब्जी की खेती में अन्य सब्जियों की खेती से भिन्न कृषि-क्रियाएं अपनानी पड़ती हैं । जैसे- विशेषत: तापमान का नियन्त्रण एवं खाद-मिट्‌टी का मिश्रण जिसमें पूर्णत: पोषक तत्व उपलब्ध रहें ।


मशरूम की खेती की ट्रेनिंग (Mushroom Ki Kheti) (Mushroom Ki Kheti), (Training)

जैसे-

दिल्ली क्षेत्र के कृषकों एवं मशरूम उत्पादकों के लिये – माइकोलोजी एंड प्लान्ट पेथोलोजी डिवीजन, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली तथा स्नोव्यू मशरूम लैब एंड ट्रेनिंग सेन्टर, गांधी आश्रम, नरेला, दिल्ली-40 आदि ।

राष्ट्रीय खुम्बी अनुसंधान केन्द्र, चंबा घाट, सोलन, हिमाचल प्रदेश ।

मशरूम अनुसंधान केन्द्र, गो. ब. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय पंतनगर, उत्तरांचल ।

सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

मेथी की खेती कैसे करें? मेथी की खेती की पूरी जानकारी

 मेथी की खेती कैसे करें? मेथी की खेती की पूरी जानकारी


Methi ki Kheti (Fenugreek Farming): मेथी की खेती (Fenugreek Cultivation) हारी साग, दानो और पत्तियां के लिए की जाती है. जिनकी बाजार में बहुत मांग रहती है. मेथी की खेती उत्तर प्रदेश, राज्यस्थान, तामिलनाडू, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब, राजस्थान और भारत के कई अन्य राज्यों में उगाई जाती है लेकिन राजस्थान मेथी का मुख्य उत्तपदक राज्य है. इसके पौधों की उचाई करीब 2-3 फीट तक बढ़ जाती है. मेथी की खेती की खेत कैसे की जाती है methi ki kheti kaise kare इसकी सम्पूर्ण जानकारी के लिए इस आर्टिकल को जरूर पढ़े जिससे मैथी की खेत करने में आपको मदद मिलेगी.






मेथी की खेती कैसे करें? 
मेथी की खेती से बढ़िया पैदावार लेने के लिए उन्नत किस्मों जैसे-पूसा कसूरी, आरटीएम- 305, राजेंद्र क्रांति एएफजी-2 और हिसार सोनाली आदि का चुनाव करना चाहिए. बुवाई से पहले खेती की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए. मेथी की बुवाई कौन से महीने में की जाती है? इन सब की जानकरी लेनी चाहिए जिससे आपको मेथी की खेती करने में कोई दिक्कत नहीं आएगी.

मेथी की खेती की पूरी जानकारी
मेथी की पत्तियों से लेकर साग, दाने तक बजार में बिक जाते है. इसलिए इसकी खेत से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.
इस लेख के जरिये मेथी की बुवाई कर की जारी है? एक बीघा में मेथी कितनी होती है? इसके लिए कितने पानी की जरुरत होती है. मेथी की फसल में कौन सा खाद डालें. मेथी की फसल कितने दिन में तैयार हो जाती है आदि की जानकरी नीचे दी जा रही है जरूर पढ़ें

मेथी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
मेथी की खेती (methi ki kheti) के लिए ठंडी जलवायु सबसे बढ़िया मानी जाती है. इसमें ठंड यानी पाला सहन करने क्षमता अन्य फसलों के मुकाबले अधिक होती है. इसकी खेती के लिए सामन्य वर्षा वाले क्षेत्र सही माने गए है.

मेथी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
मेथी की खेती (cultivation of fenugreek) के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर दोमट तथा बलुई दोमट मिट्टी सबसे उत्तम मानी गई है. इसके आवला कसूरी मेथी की खेती दोमट मटियार मिट्टी में भी की जा सकती है. यह अन्य फसलों के मुकाबले क्षारीयता को सहन कर सकती है.

मेथी की खेती के लिए कैसे तैयार करें खेत
मेथी की खेती के पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई खेत को कुछ दिन के लिए खुला छोड़ दें ताकि खेत में मौदूज खरपतवार और कीट नष्ट हो जायेंगे. इसके बाद 15-20 टन प्रति एकड़ एक हिसाब से गोबर की खाद डालकर खेत की जुताई कर पलेवा करें. खेत की ऊपरी सतह सूख जाने के बाद फिर से 2-3 आडी-तिरछी गहरी जुताई कर करे. आखिर में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरी बनाकर खेत को बिजाई के लिए समतल कर लें.

मेथी की खेती का समय
मैदानी इलाकों में मेथी की खेती के लिए सितंबर से मार्च तक बुवाई कर सकते है. जबकि पहाड़ी क्षेत्रों इसकी खेती जुलाई से लेकर अगस्त तक की जा सकती है.
अगर आप मेथी की खेती साग के लिए कर रहे है तो मेथी की बुआई 8-10 के अंतराल पर करें. जिससे आप ताज़ी साग
प्रति दिन बाजार में बेच सकेंगे. भाजी के लिए खेती की बुवाई नवंबर के आखिर तक कर सकते है.

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 12 किलोग्राम प्रति एकड़ से बीजों की आवश्यकता होती है.

कैसे करें मेथी की बुवाई?
सामन्यतः मेथी की बुवाई छिडक़वा विधि से की जाती है. लेकिन वर्तमान समय इसकी खेती बैड पर की जाने लगी है. वूबाई के समय पंक्ति से पंक्ति के बीच की दूरी 22.5 सेंटीमीटर और बैड पर 3-4 सेंटीमीटर की गहराई पर बीज बोएं.
बिजाई से पहले बीज को 10 से 12 घंटे के लिए पानी में भिगो दें ताकि मेथी के दाने जल्दी अंकुरित हो सके.




बीज का उपचार
बीजों को मिट्टी में पैदा होने वाले कीट और बीमारियों से बचाने के लिए थीरम 4GM और कार्बेनडाज़िम 50% डब्लयु पी three ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज को उपचार करें. रासायनिक उपचार के बाद एज़ोसपीरीलियम 600 ग्राम + ट्राइकोडरमा विराइड 20 ग्राम प्रति एकड़ से प्रति 12 किलो बीजों का उपचार करें.

मेथी की उन्नत किस्में और उनकी विशेषताएं
भारत में मेथी की विभ्भिन किस्में पाई जाती है. जिनमें में कुछ किस्मों की जानकारी दी जा रही है.
पूसा कसूरी मेथी – यह वैरायटी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली ने विकसित किया है. इसकी खेती हरी साग के लिए किया जाता है. इसकी कटाई 2-3 बार की जा सकती है. इस की औसत पैदावार 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है.
पूसा अर्ली बंचिंग- इस किस्म को आईसीएआर ने विकित किया है. यह जल्द पकने वाली वैरायटी है. इसकी साग के लिए 2-3 बार कटाई की जा सकती है. इस वैरायटी की फलियां 6-8 सेंटीमीटर लंबी होती हैं. इस वैरायटी को तैयार होने में four महीने लगते है.
हिसार सोनाली- इस वैरायटी की खेती राजस्थान, हरियाणा तथा आसपास में खेती की जाती है. यह वैरायटी जड़ गलन रोग एवं धब्बा रोग के प्रति मध्यम सहनशील है. इस किस्म को तैयार होने में one hundred forty से a hundred and fifty दिन तक लग जाते है. इस वैरायटी प्रति हेक्टेयर भूमि से 30-40 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है.
आर.एम.टी 305- यह बौनी वैरायटी है इस वैरायटी की फलियां जल्दी पाक जाती है. इस वैरायटी से प्रति हेक्टेयर खेत से 20-30 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है.
कश्मीरी मेथी- इस वैरायटी की विशेषताएं पूसा अर्ली बंचिंग से मेल कहती है. यह वैरायटी ठंड जयदा सहन कर लेती है.
हिसार सुवर्णा – चौधरी चरणसिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार ने इस वैरायटी को विकसित किया है. इसकी औसतन पैदावार sixteen क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
इन किस्मों के अलावा मेथी की अन्य उन्नतशील किस्में – आरएमटी 1, आरएमटी 143 और 365, हिसार माधवी, हिसार सोनाली और प्रभा भी अच्छी उपज देती हैं.


खाद एवं उर्वरक
मेथी की बिजाई के समय 5 किलो नाइट्रोजन (12 किलो यूरिया), eight किलो पौटेशियम (50 किलो सुपर फासफेट) प्रति एकड़ की दर से डालें.
अंकुरन के 15-20 दिन बाद- अच्छी वृद्धि के लिए ट्राइकोंटानोल हारमोन 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
बिजाई के 20-25 दिन बाद- फसल की अच्छी वृद्धि के लिए एनपीके (19:19: 19) seventy five ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे करें.
बिजाई के 40-50 दिन बाद- अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए ब्रासीनोलाइड 50 मि.ली. प्रति एकड़ one hundred fifty लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें
बिजाई के forty five और sixty five दिन- इसकी दूसरी स्प्रे 10 दिनों के बाद करें. कोहरे से होने वाले हमले से बचाने के लिए थाइयूरिया one hundred fifty ग्राम प्रति एकड़ की one hundred fifty लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें.

मेथी की फसल की सिचाई

मेथी की बुवाई के समय खेत में नमी होनी चाहिए जिससे अंकुरण में आसानी होगी. मेथी की फसल से उचित पैदावार लेने के लिए तीन चार सिचाई आवश्यक्तानुसार करनी चाहिए. मेथी की फली बनने के समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए. इससे पैदावर पर असर पड़ेगा.

मेथी की फसल में खरपतवार नियंत्रण
मेथी की फसल में खरपतवार की रोकथाम बहुत जरुरी है इसके लिए बिजाई के 20-25 दिन बाद पहली नराई-गुड़ाई करनी चाहिए तथा दूसरी 30-35 दिनों के बाद करें. रासायनिक तरीकों से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए फलूक्लोरालिन 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर कर सकते है. इसके अतरिक्त पैंडीमैथालिन 1.3 लीटर प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 1-2 दिनों बाद मिट्टी में नमी बने रहने पर छिड़काव करें. अधिक जानकारी अपने कृषि वैज्ञानिक से लेने.

मेथी की कब करें कटाई?
मेथी को साग के लिए उगने वाले किसान 30-35 दिन बाद कटाई कर सकते है. मेथी की फसल 140-150 दिनों में तैयार हो जाती है. मेथी एक दानो के लिए उगाई गई फसल की कटाई तब करें जब मेथी के निचले पत्तों का रंग पीला पढ़कर झड़ने लगे. दरांती से कटाई करने के बाद फसल की गठरी बनाकर 7-8 दिन घूप में सुखाएं. सूखने पर इसके दानो को निकल ले.



मेथी की खेती में लागत और कमाई
यदि मेथी की बुवाई बीज के लिए की गई है तो एक बार कटाई के बाद औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है. यदि मेथी की की फसल की 4-5 कटाई की जाए तो यही पैदावार घट कर लगभग 1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक रह जाती है.

यदि मेथी की बुवाई यदि साग या हरी पत्तियों के लिए की गई है तो 70-80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिल सकती है. मेथी की पत्तियों को सुखाकर भी बेचा जाता है. यदि मेथी की खेती वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो 2-5 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर कमाया जा सकता है.

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